Saturday 2 April 2016

कुछ गवाया ही नही

जख्म गहरा था मगर, हमने दिखाया ही नही
उन्होने पूछा ही नही, हमने बताया ही नही|

फिर जिन यादो को, भुलाने मे जीवन बिताया
लेकिन हमने कहाँ, यादो ने सताया ही नही|

मरके भी वो कब्र मे, कब से जाग रहा है
पर जाने वाला तो कभी, लौट कर आया ही नही|

इतने मशरूफ थे हम, चाहत मे तुम्हारी
दुनिया ने कहाँ कि, नाम कमाया ही नही|

महल से निकल कर, सड़को तक आ गये
फिर भी कहा कि, इश्क़ मे कुछ गवाया ही नही|

No comments:

Post a Comment