Sunday 28 February 2016

गम नही होते

         कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

अगर तुम नही होती
        या फिर हम नही होते,
फिर जिंदगी मे मेरी
        इतने गम नही होते ||

मई जून की गरमी मे
        जलता है जब बदन,
कैसे कह दूँ कि अश्क
        मेरे नम नही होते||

जो मिलते है घाव
        फक़्त मोहब्बत मे,
इन जख़्मो के कही
        मरहम नही होते||

जो आशिक़ी मे तेरी
        भरे कलम ने पन्ने,
कितना भी जला दूं मै
        ये कम नही होते ||


जब से मैने जाना
        "माँ" क्या होती है,
ख्वाबो मे मेरी तुम
        हर दम नही होते||

Sunday 21 February 2016

ये बार बार लिख दूँ


          कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

तिरछी हुई नज़र पर
ये बार बार लिख दूँ,
तेरी हर एक अदा पर
गज़ले हज़ार लिख दूँ ||

हर दिन तेरी कशिश मे
कुछ इस तरह से खोया,
लिखना चाहूँ मे जुमे रात
और सोमवार लिख दूँ ||

तेरे लिए मोहब्बत मे
क्या क्या लुटाने आया
कोई पूछ ले अगर तो
          मैं बेशुमार लिख दूँ ||

नफ़रत भारी निगाहो से
सबको देखती है दुनिया,
जो तुझको देख लूँ
तो प्यार प्यार लिख दूँ ||

एक बार तो ठहरो
मंज़िल के रास्ते मे,
चलती हुई निगाहो पर
बस इंतेजार लिख दूँ ||

तिरछी हुई नज़र पर
ये बार बार लिख दूँ,
तेरी हर एक अदा पर
गज़ले हज़ार लिख दूँ ||

Friday 5 February 2016

जख्म बहुत ही गहरा है

        कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

कैसे दिखा दूँ, जख्म ये दिल का
ये जख्म बहुत ही गहरा है,
जुदाई तेरी जख्म बड़ाती
मरहम तेरा चेहरा है ||

ना जाने मैं कैसे तुझसे जुड़ा
    ये सवाल बहुत ही गहरा है,
तुमको सांसो मै छिपालू
    पर सांसो पर भी पहरा है||

तुम्हे सुनाता अपनी आवाज़
    शायद तुझे कुछ आए याद,
मेरी आवाज़ो का अर्थ ना निकला
    लगता है सनम मेरा बहरा है ||

ख्वाबों मै तुम मेरे ख्वाब मै आयीं
    वो ख्वाब बहुत ही गहरा था
घूँघट पहने तुम बैठी थी
    माथे पर मेरे सेहरा था ||

इससे पहले की घूँघट उठता
    मेरा थोड़ा सा गम घटता,
टूट गया वो मेरा सपना
    वक़्त जहा पर ठहरा था||

कैसे दिखा दूँ, जख्म ये दिल का
ये जख्म बहुत ही गहरा है||