Monday 25 April 2016

जिंदगी के उस मोड़ पर

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय


जिंदगी के उस मोड़ पर(यह कविता एक प्रेमी और प्रेमिका के विचारो की अभिव्यक्ति करती है जो आज एक दूसरे से बुढ़ापे मे मिलते है ३० साल के लंबे अरसे बाद)

जिंदगी के उस मोड़ पर आकर मिली हो तुम
की अब मिल भी जाओ तो मिलने का गम होगा|

माना मेरा जीवन एक प्यार का सागर
कितना भी निकालो कहा इससे कुछ कम होगा||

चाँदनी सी जो अब उगने लगी है बालो मे
माना ये उम्र तुम पर अब और भी अच्छी लगती है|

अब जो तोड़ा सा तुतलाने लगी हो बोलने मे
छोटे बच्चे सी ज़ुबान कितनी सच्ची लगती है|

सलवटें जो अब पढ़ने लगी है गालो पर तुम्हारे
लगता है कि जैसे रास्ता बदला है किसी नदी ने ||

जो हर कदम पर रुक-२ कर सभलने लगी हो
सोचती तो होगी कि सभालने आ जाऊं कही मे |

तुम्हारी नज़र भी अब कुछ कमजोर हो गयी है
जैसे कि मेरा प्यार तुम्हे दिखा ही नही |

मिलने की चाह थी मुझे जो अब तक चला हूँ
विपदाए लाखो आई पर देखो रुका ही नही ||

पर फिर भी ...... 

जिंदगी के उस मोड़ पर आकर मिली हो तुम
की अब मिल भी जाओ तो मिलने का गम होगा|

Wednesday 20 April 2016

कैसा होगा सफ़र

आफिस का अंतिम दिन था, छोड़ना था शहर
बस यही सोचता हूँ, कि कैसा होगा सफ़र...

उम्मीदे थी बहुत सारी, निकलना था दूर
सुबह से ही जाने क्यो, छाया था सुरूर
बैठे-२ हो गयी देखो सुबह से सहर
            कैसा होगा सफ़र......

शाम कल की थी, तब से थे तैयार
साथ सब ले लिया, जिस पर था अधिकार
चल दिए अकेले ही पर नयी थी डगर
            कैसा होगा सफ़र......

सब कुछ लिया, या कुछ छोड़ दिया
चला राह वापसी, खुद को जोड़ दिया
डरता हूँ पर मै, कुछ रह ना जाए अधर
           कैसा होगा सफ़र......

कभी आया इधर मैं, कभी गया उधर
कितनी राहे चला, फिर भी मंज़िल किधर
खो ना जाऊ यहाँ, मुझको लगता है डर
          कैसा होगा सफ़र......

Thursday 7 April 2016

क्रोध

क्रोध तन को जलाए,
           क्रोध से कोन जीत पाए
क्रोध की ज्वाला ऐसी,
           सूरज की गर्मी जैसी
क्रोध से तन ऐसे कापे,
           सागर मे ज्वार जैसे जागे
क्रोध मे सारे रिश्ते भुलाए,
           क्रोध मे कोई साथ न आए
क्रोध मे जो नर जला है
            चिताअग्नि मे जलने से बुरा है|

Saturday 2 April 2016

कुछ गवाया ही नही

जख्म गहरा था मगर, हमने दिखाया ही नही
उन्होने पूछा ही नही, हमने बताया ही नही|

फिर जिन यादो को, भुलाने मे जीवन बिताया
लेकिन हमने कहाँ, यादो ने सताया ही नही|

मरके भी वो कब्र मे, कब से जाग रहा है
पर जाने वाला तो कभी, लौट कर आया ही नही|

इतने मशरूफ थे हम, चाहत मे तुम्हारी
दुनिया ने कहाँ कि, नाम कमाया ही नही|

महल से निकल कर, सड़को तक आ गये
फिर भी कहा कि, इश्क़ मे कुछ गवाया ही नही|

बात हो रही है

किसी के दिन की बात हो रही है,
            किसी की रात की बात हो रही है|

कही दर्द की बात हो रही है,
            कही ज़ज्बात की बात हो रही है|

कही दो बदन सुलग रहे है तो,
          कही आशुओं की बरसात हो रही है|

हर बाजी जीतने वाला भी सोचे,
          क्यो ये मेरे साथ हो रही है|

आज तक जो खामोश रहा,
          क्यो महफ़िल मे उसकी बात हो रही है|

कही कहानी का अंत हो रहा है,
          तो कही नयी सुरुआत हो रही है ||