Monday 28 November 2016

तुझे कबूल इस समय

कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

परिस्थितियाँ नही है मेरी माकूल इस समय
तू ही बता कैसे करूँ तुझे कबूल इस समय ||

इशारो मे बोलकर कुछ गुनहगार बन गये है
लब्जो से कुछ भी बोलना फ़िज़ूल इस समय ||

परिवार मे भी जिसकी बनती थी नही कभी
क्यो खुद को समझता है मक़बूल इस समय ||

इंसान से इंसान की इंसानियत है लापता
दिखता नही खुदा मुझे तेरा रसूल इस समय ||

जो ना आए कभी कितने कमाल के दिन थे
याद उनको करके करेंगे हम भूल इस समय ||

Wednesday 2 November 2016

सच बताएगा कौन?

कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

अगर दोनो रूठे रहे, तो फिर मनाएगा कौन?
लब दोनो ने सिले, तो सच बताएगा कौन?

तुम अपने ख़यालो मे, मै अपने ख़यालो मे
यदि दोनो खोए रहे, तो फिर जगाएगा कौन?

ना तुमने मुड़कर देखा, ना मैने कुछ कहाँ
ऐसे सूरते हाल मे, तो फिर बुलाएगा कौन?

मेरी चाहत धरती, तुम्हारी चाहत आसमान
क्षितिज तक ना चले, तो मिलाएगा कौन?

मेरी समझ को तुम, तुम्हे मै नही समझा
इस समझ को हमे, आज समझाएगा कौन?

लड़खडाकर गिरे उठे, ढूढ़ने अपनी मंज़िल
नजरो मे गिरे अगर, तो बचाएगा कौन ?

लब दोनो ने सिले, तो सच बताएगा कौन?