Thursday 28 September 2017

कभी सोचता हूँ कि

कभी सोचता हूँ  कि
जिंदगी की हर साँस जिसके नाम लिख दूँ
वो नाम इतना गुमनाम सा क्यों है ?

कभी सोचता हूँ  कि
हर दर्द हर शिकन में, हर ख़ुशी हर जलन में
हर वादे-ए-जिंदगी में, हर हिज्र-ए -वहन में
जोड़ दूँ जिसका नाम, इतना गुमनाम सा क्यों है ?

कभी सोचता हूँ  कि
सुबह है, खुली है अभी शायद आँखें मेरी
लगता है पर अभी से शाम क्यों है
फिर सोचता हूँ वजह, तेरा चेहरा नजर आता है
चेहरा है, पर नाम गुमनाम सा क्यों है?

कभी सोचता हूँ  कि
लोग करते है फ़रिश्तो से मिलने की फ़रियाद
तेरे तसवुर में हमें रहता नहीं कुछ भी याद
वो हाल जिसे  छिपाने की कश्मकश में हूँ 
मेरी निगाहों में सरेआम सा क्यों है ?

कभी सोचता हूँ कि.... 

Thursday 14 September 2017

जिस रात उस गली में

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

रौशनी में खो गयी कुछ बात जिस गली में
वो चाँद ढूढ़ने गया जिस रात उस गली में ||

आज झगड़ रहे है आपस में कुछ लुटेरे
कुछ जोगी गुजरे थे एक साथ उस गली में ||

कुछ चिरागो ने जहाँ अपनी रौशनी खो दी
क्यों ढूढ़ता है पागल कयनात उस गली में ||

मौसम बदलते होंगे तुम्हारे शहर में लेकिन
रहती है आँशुओं की बरसात उस गली में ||

सूरज को भी ग्रहण लगता है हर एक साल
बदलेंगे एक दिन जरूर हालत उस गली में ||  

Wednesday 6 September 2017

फूलो के इम्तिहान का

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

मंदिर में काटों ने अपनी जगह बना ली
वक़्त आ गया है फूलो के इम्तिहान का  ||

सावन में भीगना कहाँ जुल्फों से खेलना
बारिश में जलता घर किसी किसान का ||

हालात बदलने की कल बात करता था
लापता है पता आज उसके मकान का ||

निगाह उठी आज तो महसूस करता हूँ
लाल सा दिखने लगा रंग आसमान का ||

लुटेरों की हुक़ूमत जहाजों पर हो गयी
अंदाजा किसे है दरिया के नुकसान का ||

आइना कहाँ दुनियाँ की नजर में  "शिव"
अपने ही सबूत मांगते तेरी पहचान का ||

तबीयत बदल जाए

तबीयत से देख ले तुम्हे तो तबीयत बदल जाए, 
मेरा ईमान बदला है उनकी शरीयत बदल जाए || 
कवि: #शिवदत्त श्रोत्रिय