Friday 16 September 2016

सफ़र आसान हो जाए

गुमनाम राहो पर एक नयी पहचान हो जाए
चलो कुछ दूर साथ तो, सफ़र आसान हो जाए||

होड़ मची है मिटाने को इंसानियत के निशान
रुक जाओ इससे पहले, ज़हां शमशान हो जाए||

वक़्त है, थाम लो, रिश्तो की बागडोर आज
ऐसा ना हो कि कल, भाई मेहमान हो जाए||

इंसान हो इंसानियत के हक अदा कर दो
ऐसा ना हो ये जिंदगी, एक एहसान हो जाए ||

अपनी ही खातिर आज तक जीते चले आए
आओ चलो किसी और की, मुस्कान हो जाए ||

Monday 12 September 2016

रातभर तुम्हारे बारे मे लिखा मैने

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

उस रात नीद नही आ रही थी,
कोशिश थी भुला के तेरी यादे बिस्तर को गले लगा सो जाऊ
पर कम्बख़्त तू थी जो कहीं नही जा रही थी||

नीद की खातिर २ जाम लगाए,
सोचा कि सोने के बाद हमारी बातो को मै कागज पर उतारूँगा
एक कागज उठा सिरहाने रख कर मे सो गया||

रातभर तुम्हारे बारे मे लिखा मैने,
सुबह उठा तो थोड़ा परेशान हुआ क़ि गुफ्तगू के निशान गायब
शायद, शब्द सारी रात आँसुओ से धुलते रहे ||

वो गीले कागज मैने संजोए रखे.
क्योकि अगर कभी मिली तुम मुझको कागज दिखाकर के पूछना है
क्या बात करते थे हम? आज तो बता दो ||