कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय
तुमने कहा तो चल दिए,
कलम तकिये पर छोड़ कर
हमने तो ना कभी कहा
इस जंग को तैयार थे ||
जो मिला कुछ जानदार
साथ उसको ले लिया
घर पर जो छोड़ दिया
वो धारदार हथियार थे ||
किसी की मोहब्बत ने हमे
शायर बना के छोड़ा
वरना तोअब तक आदमी
हम भी ज़रा बेकार थे |
एक बार चढ़े हम मंच पर
दूर-२ तक हमको सुन लिया
वैसे कुछ दिन पहले तक
हम बिन पढ़े अख़बार थे||
ये ना सोचो की हमारी
किसी को परवाह नही
हर शाम दरवाजे पर बैठी
माँ की आँखो का इंतेजार थे||
तुमने कहा तो चल दिए,
कलम तकिये पर छोड़ कर
हमने तो ना कभी कहा
इस जंग को तैयार थे ||
जो मिला कुछ जानदार
साथ उसको ले लिया
घर पर जो छोड़ दिया
वो धारदार हथियार थे ||
किसी की मोहब्बत ने हमे
शायर बना के छोड़ा
वरना तोअब तक आदमी
हम भी ज़रा बेकार थे |
एक बार चढ़े हम मंच पर
दूर-२ तक हमको सुन लिया
वैसे कुछ दिन पहले तक
हम बिन पढ़े अख़बार थे||
ये ना सोचो की हमारी
किसी को परवाह नही
हर शाम दरवाजे पर बैठी
माँ की आँखो का इंतेजार थे||