Wednesday 23 March 2016

माँ की आँखो का इंतेजार थे

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

तुमने कहा तो चल दिए,
         कलम तकिये पर छोड़ कर
हमने तो ना कभी कहा
         इस जंग को तैयार थे ||

जो मिला कुछ जानदार
         साथ उसको ले लिया
घर पर जो छोड़ दिया
         वो धारदार हथियार थे ||

किसी की मोहब्बत ने हमे
          शायर बना के छोड़ा
वरना तोअब तक आदमी
         हम भी ज़रा बेकार थे |
     
एक बार चढ़े हम मंच पर
         दूर-२ तक हमको सुन लिया
वैसे कुछ दिन पहले तक
         हम बिन पढ़े अख़बार थे||

ये ना सोचो की हमारी
        किसी को परवाह नही
हर शाम दरवाजे पर बैठी
        माँ की आँखो का इंतेजार थे||

Tuesday 22 March 2016

मेरी खुशी बन गयी

तुम्हे देखा तो लगा,
कि कुछ मिल गया
जब कुछ मिला,
तो पाने की चाहत बढ़ी
जब चाहत बढ़ी,
तो हिम्मत बढ़ी
हिम्मत बढ़ी तो,
तुम्हारे पास आ बैठे
जब पास आ बैठे,
तो कुछ बात करना चाही
बात करना चाही,
तो शब्द ना मिले
शब्द ना मिले तो,
भाव मन मे रह गये
भाव मन मे रहे
तो मन उदास था
जो उदास मन मे था
उसे कलम ने उकेरा
कलम के चलने से,
पन्ने भर गये
पन्ने भर गये,
तो कलम खुश थी
कलम खुश थी
तो मै खुश था
इस तरह तुम ना जानते हुए भी
      मेरी खुशी बन गयी,

क्या -२ राज बताते लोग

धूप से छाँव चुराते लोग,
          हसते और हसाते लोग|

भाई से कभी मिला नही,
          दुश्मन से मिलवाते लोग|

भक्त बैठकर सिंघासन पर,
          ईश्वर को नचावाते लोग|

नेता का सिर झुका हुआ,
         क्या-२ काम करते लोग|

घूँघट से शायद देख रही,
          खुद से ही शरमाते लोग|

मैने चलना छोड़ दिया है,
          फिर भी आते-जाते लोग|

"शिव" की खामोशी चीख रही,
         क्या -२ राज बताते लोग||

Sunday 6 March 2016

"माँ" तेरे पास तक


         कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

उठा कर हिमालय हाथ मे,
              कलम का एक रूप दूँ
 घोलकर सागर मे स्याही,
              उससे फिर एक बूँद लूँ|
कागज बना लूँ जोड़कर,
              धरती से आकाश तक
फिर भी लिख सकता नही,
              "माँ" तेरे पास तक ||