Wednesday 23 March 2016

माँ की आँखो का इंतेजार थे

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

तुमने कहा तो चल दिए,
         कलम तकिये पर छोड़ कर
हमने तो ना कभी कहा
         इस जंग को तैयार थे ||

जो मिला कुछ जानदार
         साथ उसको ले लिया
घर पर जो छोड़ दिया
         वो धारदार हथियार थे ||

किसी की मोहब्बत ने हमे
          शायर बना के छोड़ा
वरना तोअब तक आदमी
         हम भी ज़रा बेकार थे |
     
एक बार चढ़े हम मंच पर
         दूर-२ तक हमको सुन लिया
वैसे कुछ दिन पहले तक
         हम बिन पढ़े अख़बार थे||

ये ना सोचो की हमारी
        किसी को परवाह नही
हर शाम दरवाजे पर बैठी
        माँ की आँखो का इंतेजार थे||

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