कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय
जब भी भटकता हूँ किसी की तलाश में
थक कर पहुच जाता हूँ तुम्हारे पास में
तुम भी भटकती हो किसी की तलाश में
ठहर जाती हो आकर के मेरे पास में
हर दिन भटकते रहे चाहे इस दुनियाँ में
मिलते रहे आपस में दूसरो की तलाश में ||
जब भी भटकता हूँ किसी की तलाश में
थक कर पहुच जाता हूँ तुम्हारे पास में
तुम भी भटकती हो किसी की तलाश में
ठहर जाती हो आकर के मेरे पास में
हर दिन भटकते रहे चाहे इस दुनियाँ में
मिलते रहे आपस में दूसरो की तलाश में ||
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