Sunday 15 November 2015

प्रमोशन माँगूँगा नही

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

वक़्त पर आ जाऊँगा,
        वक़्त से ना जाऊँगा
वक़्त ज़्यादातर मैं अपना
       ऑफीस में ही बिताऊँगा
हर दिन करूँगा काम पर
       रविवार जागूंगा नही||
 प्रमोशन माँगूँगा  नही...

ज़िम्मेदारियाँ सारी संभालूँगा
       जो भी तुम मुझसे कहो
पर लघुता ना तुम मेरी छुओ,
       हो मैनेजर तो बने रहो
इस हृदय की पीर है जो
       उसको त्यागूंगा नही||
 प्रमोशन माँगूँगा  नही...

रेटिंग A पाने की होड़ में
       मैं भी खड़ा हूँ दौड़ में,
यही पाने की लिए क्या
       आया हूँ परिवार छोड़ मैं|
पर किसी के अश्रु पर
       खुशी चाहूँगा नही||
 प्रमोशन माँगूँगा  नही...

हर बार जो मुझको मिला
       उसका नही मुझको गिला
लाखो लहरे टकराई
       किंतु कब पर्वत हिला
कर्तव्य अडिग पर्वत सा
       छोड़ भांगूँगा नही|
 प्रमोशन माँगूँगा  नही...

Sunday 11 October 2015

विलक्षण मानव

मैने तुझको लिप्त है देखा
भोग विलास के प्रकारो में,
मैने तुझको जाते है देखा
    मंदिर मस्जिद गुरुद्वारो में |

भाई को भाई से लड़ते देखा
    लड़ते लड़ते मरते देखा
किसी अंजान की खातिर
    दुनिया से भी झगड़ते देखा |

देखा मैने तुझको खेलते
  नारी के अधिकारो से
कभी भरी कलाई देखी
  राखी के त्योहारो से |

मैने प्यार के धोखे में
अस्मत को भी लूटते देखा
बड़ी बड़ी दीवारो बीच
  नाज़ुक दिल को टूटते देखा |

एक मा को मैने रोते देखा
    बेटो को भूखे सोता देखा
दूर कही एक मंदिर में
    भंडारा भी होते देखा |

कई संस्कृति मिटाते देखा
    एक नई संस्कृति बनाते देखा
किसी और के सपनो पर
    सपनो का महल बनाते देखा |

किसी की खातिर जाल बिछाया
        उसी जाल में फसते देखा
कभी कभी तो बिना बात के
      रोते और फिर हसते देखा |

Friday 18 September 2015

मल्लाह से नाव मॅंगा रहे

प्रभु खड़े गंगा किनारे केवट को बुलवा रहे
पार होने के लिए मल्लाह से नाव मगा रहे||

तो सुनकर एक मल्लाह चला आया प्रभु के पास मे,
और बोला, सुना है रज चरण से पत्थर उड़े आकाश मे||
जब पत्थर उड़े आकाश मे तो सामर्थ कहा फिर काठ मे
तो करले अपनी दूर सन्सय यो हरी बतला रहे.
पार होने के लिए मल्लाह से नाव मॅंगा रहे.......

फिर सहित सीता नाथ लक्ष्मण जा विराजे नाव मे,
मल्लाह ने बल्ली लगा कर नैया को छोड़ा धार मे,
फिर धीरे-2 जा उतारे पार मे.

तो क्या विदा दे दू इसे, कुछ पास ना सकुचा रहे
तो सीता बोली हरी से मन मे सकुचाओ मति,
है अँगूठी पास मे, इसको दे दीजे पति|
देखकर इस द्श्य कहा मल्लाह ने, कि दर्शन किए सो हो गति

मे नाथ माझी घाट का, संसार सागर के हो तुम
मेने किया है पार तुमको, मुझको लगाना पार तुम
तो देखकर इस  द्श्य  को देवता हर्षा रहे
पार होने के लिए मल्लाह से नाव मॅंगा रहे.......

Sunday 16 August 2015

जैविक खेती

सूख रहा धरती का कण -2
       हरियाली मिटती जाती है,
शस्य श्यामला वसुंधरा की
       सुंदरता घटती जाती है||

गगन पवन मई जहर घुल रहा
      भूमि बन रही ऊसर बंजर,
रही धरोहर जो हम सबकी
      वही संपाति हो रही जर्जर||

प्राकृतिक संपदा उजड़ रही
       टूट रहा माटी से नाता,
धन की चाहत में मनुज का
       प्रेम धरती से घटता जाता||

धधकती है छाती धरती की
       वर्षा ने मुख मोड़ लिया,
हरियाली छाने के इंतेजार से
       पक्षियो ने नाता तोड़ लिया||

जैविक खेती अपनाने से
      जीवन सुखमय हो जाएगा
सम्मान भी वापस लौटेगा
       अमृतरस फिर भर जाएगा||

तुम बिन रह नही सकता

ये कहना ग़लत था मेरा,
       क़ि तुम बिन रह नही सकता||

एक अटूट भरोसा था
      पर अब वैसा व्यवहार नही|
बंधन टूट चुका है
      शायद दोनो में प्यार नही||
मेरे इल्ज़ामो की फेहरिस्त तो
     बड़ी लंबी है मगर सुन ले
तुझे बेवफा कह दे कोई
     ये मैं सह नही सकता||

ये कहना ग़लत था मेरा...

हर रोज तस्वीर से तुम्हारी
     तुम्हे महसूस करता हूँ|
तुम जा चुकी हो फिर भी
     तुम्हे खोने से डरता हूँ||
इंतजार तो आज भी है क़ि
     तुम लौट आओ कैसे भी
फिर भी अब खुद से
     ये मैं कह नही सकता ||

ये कहना ग़लत था मेरा...

कुछ अपने हसीन लम्हो को
      कागज पर सज़ा दिया|
तुम्हारी यादो को समेटा
      एक नगमा बना दिया||
हर दिन टूट जाता है कुछ मुझमे
      तुम्हे समेटने की चाहत में
फिर भी मुस्कराता हूँ मैं
      ये आंशू बह नही सकता||

ये कहना ग़लत था मेरा...

Monday 13 July 2015

पापा कहाँ खो जाते हो|

शाम को ऑफीस से जब भी तुम घर आते हो,
सबसे पहले आकर के TV का बटन दबाते हो|
रिमोट उठाकर के मनपसंद channel लगते हो,
फिर चलचित्र की दुनिया मैं पापा कहाँ खो जाते हो||

ना जाने की फोन पर क्या-2 type करते रहते हो,
कभी-2 तो खुद से भी कुछ बाते करते रहते हो|
लगता है सबसे ज़्यादा phone आपको प्यारा है,
ऐसा लगने लगता है, जैसे झूठा साथ हमारा है||

मैं सुबह से शाम तक आप के इंतजार मैं रहता हूँ,
बातें आपसे करता हूँ, अपने मित्रो से कहता हूँ|
थके हारे जब भी पापा, ऑफीस से घर आते है,
भूल के सारी काम की चिंता, मुझको गले लगाते है||

मैं बोलू या चुप रहूं, पापा सब समझ जाते है
मेरी हर इच्छा को बिन बोले पूरी कर जाते हैं||

शायद मैं छोटा हूँ बहुत, आपकी मजबूरी को जानता नही
आपकी व्यस्तता के प्रति, ज़िम्मेदारी को पहचानता नही||
पर मेरा भी तो कुछ हक है, आपके साथ समय बिताने का|
माँ को गले लगाने का,फिर  संसार को भूल जाने का||

माना मोबाइल आपको बहुत प्यारा है, पर थोड़ा सा हक तो हमारा है
मोबाइल जितना अगर हो ना सके,TV जितना ही प्यार करो|
Office से घर आते ही, मुझको भी बाहों मे भरो|
सारी दुनिया के रिस्ते निभाते हो, बेटा बहुत याद आते हो
पापा, ऐसा कभी मुझसे भी कहो ||

Sunday 5 July 2015

तुम्हारे हाथो में

अब सौप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथो में,
है जीत तुम्हारे  हाथोमेंऔर  हार  तुम्हारे  हाथो  में.

मेरा निश्चय बस एक यही, एक बार तुम्हे पा जाऊ में,
अर्पण कर दू दुनिया भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथोमे.

में जग में रहू तो ऐसे रहू, ज्यो जल में कमल का फुल रहे,
मेरे  सब  गुणदोष  समर्पितकर्तार   तुम्हारे  हाथो  में.

यदि मानव का मुझे जन्म मिले,तो तव चरणों एक पुजारी बनू,
ईस पूजक की  ईक -2  रगका, हो  तार  तुम्हारे  हाथो  में.

जब जब संसारका कैदी बनू, निष्काम भाव से कर्म करू,
फिर अंत समय में प्राण तजुसाकार  तुम्हारे  हाथो में.

मुज्मे तुजमे बस भेद यही, में नर हूँ तुम नारायण हो,
में  हूँ  संसार  के  हाथो  में , संसार  तुम्हारे  हाथो   में

Saturday 13 June 2015

जख्म गहरा था

जख्म गहरा था मगर, हमने दिखाया ही नही|
उसने पूछा नही, हमने बताया ही नही||
कुछ ना समझे वो अगर, इसमे खता मेरी कहाँ|
हाल ए दिल हमने कभी उनसे छिपाया ही नही||
मेरी निगाहें है निगेहबान अभी तक उनकी|
जाने वाला तो कभी लौट कर आया ही नही||
याद तन्हाई मैं जब भी तेरी आयी हमको|
कैसे कह दूँ क़ि कभी अश्क बहाया ही नही||
तेरी दुनिया को हमारी ज़रूरत है सनम|
फिर ना कहना की कभी हमने बताया ही नही||

Sunday 12 April 2015

मेरी परिभाषा

तुम मेरे सुने जीवन मे
कुछ पाने की एक आशा थी|
उन्मुक्त हो चला मै जिस पथ पर
उस पथ की अभिलाषा थी|
तुमको जानू, तुमको देखु
एक यही जिज्ञासा थी|
हर वक़्त जो मेरे मुख से निकले
तुम ऐसी एक भाषा थी|
कुल मिलाकर बोलू अगर मै
तो तुम मेरी परिभाषा थी||

Monday 30 March 2015

चाह है कि कुछ और पल रह लू मैं माँ के साथ आज

दफ़्तर से छुट्टी लेकर
जब भी घर जाता हूँ मैं
मुस्करा देती है माँ
और मर जाता हूँ मैं||

रेत से दरिया किनारे
लिखे वादो सा हूँ मैं
आता है झोका हवा का
और उड़ जाता हूँ मैं||

माँ पिता भाई बहिन
सबको मुझसे कुछ उमीद है
देखता हूँ उनके चेहरे
और डर जाता हूँ मैं||

जिम्मेदारियो का बोज़ हैं
सागर की लहरो की तरह
क्यो छोड़ कश्ती का सहारा
लहरो मे उतर जाता हूँ मैं||

समेट कर दुनिया की ताक़त
माँ से गले मिलता मैं
देख कर दो बूँद आँखो मे
बिखर जाता हूँ मैं||

चाह है कि कुछ और पल
रह लू मैं माँ के साथ आज,
सोच ये किसी मोड़ पर
फिर ठहर जाता हूँ मैं||

आज तो मैं जा रहा
अगली बार जल्दी लौटूँगा
कुछ इन विचारो के साथ
खुद से ही लड़ जाता हूँ मैं||

Monday 16 March 2015

जीवन और मृत्यु

जिस दिन मैने जन्म लिया
जिस दिन मैने जीवन पाया|
मृत्यु प्रेयशी ने भी हसकर
मुझे उसी दिन से अपनाया||

मेरी आयुष की माला मे
स्वासो के सुंदर से मोती
जीवन देता रहा नियति
हँस हंसकर उनको रही पिरोती||

किन्तु मृत्यु ने साथ-साथ ही
लेकर उन्हे मसल डाला है|
स्वासो की जो मिली धरोहर
उसने उसे कुचल डाला है||

मेरी द्वार देहरी पर ही
दोनो का व्यवहार रहा है|
पल-पल मे लेने-देने का
दोनो मे व्यापार रहा है||

जीवन और मृत्यु दोनो कब
होकर अलग-अलग चलते है|
दोनो मेरे साथ-साथ है
दोनो साथ-साथ पलते है||

इसीलिए तो मुझे मृत्यु से
सच मानो कोई द्रोह नही है
और सत्य यह भी है मुझको
जीवन से कुछ मोह नही है||

Friday 6 February 2015

मकान की यादे

मकान का बाहरी कमरा जहाँ दादा जी रहते थे|
ना जाने सोते थे कब, बस जागते रहते थे
पिताजी  डाँटते थे जब भी मुझे दादा जी बचाते थे
तुझसे कम सैतान है पापा से कहते थे
कमरे के बीच मे तखत पर दादा जी और उनकी छड़ी रहती थी
दाई तरफ दीवार मे एक दराज मे एक घड़ी रहती थी
दादाजी थे तो घर पर ,लगता था हमेशा एक पहरा था
रिश्तो को संजोये रखने का,हुनर उनके पास गहरा था
अब तो वहाँ बस उनकी तस्वीर और कुछ याद रहती है
जिसमे चेहरे की चमक कुछ धूल से धुंधली सी हो गयी है
कभी पापा साफ करते है कभी हवा साफ कर जाती है
घर मे कोई और तो बात नही करता
लगता है हवा ही दादाजी से कुछ बात कर जाती है ||

सुबह वो उसका ची-2 करके सबको उठा जाना
ज़रा सी आहट होने पर फुर्र से उड़ जाना
मकान के आँगन मे चिड़िया एक घोसला बनाती थी
दिन भर दाना चुंगती, नन्हे बच्‍चों को चुगांती थी
पर अब चिड़िया ने खुद को आँगन मे आने से रोक लिया है
क्यो की घर के आगन को उपरी मंज़िल की छत ने ढक लिया है
मकान की उपरी छत पर कुछ किरायेदार रहते है
जिनसे अब कुछ किराया और कुछ शोर आता है||


मकान का वो कमरा जहाँ पढ़ा करता था मै और भाई
किताब कापियो के अलावा वहाँ दिखता नही कोई
किताबो की जगह अब कम्प्यूटर तन्त्र ने लेली
पहले विधयालय नही जाते थे किताबो के बहाने से
अब बड़े-२ काम हो जाते है एक क्लिक दबाने से||

आज किताबो को पलटा मैने धूल हटाने के बहाने से
सूखा गुलाब निकला जो अमानत था किसी की एक जमाने से
किताबो के पन्नो पर जिनका नाम लिख रखा था
अब वो नाम काम आते है लॅपटॉप का पासवर्ड बनाने मे

जब किताबो की जगह ई-बुक ने ले ली
तो सोचता हूँ की इन सब किताबो का क्या होगा
हर पन्ने मे दफ़न कोई याद,ख्वाबो का क्या होगा
किताबो मे छिपी कहानियो के फरिस्तो का क्या होगा
किताबे माँगने गिरने उठाने के बहाने जो रिस्ते बनते  थे अब उन
रिस्तो का क्या होगा||

Sunday 4 January 2015

मै अकेला ही था


मै रो रहा था जब
तब सब हस रहे थे
मै ठिठुर रहा था ठंड मे
सब कपड़ो को कस रहे थे
दुनिया नयी थी मेरे लिए
हर रिस्ता नया था
सब कहते थे घर मे
मेहमान आ गया था
कुछ समय पहले ये दुनिया ना थी
मै अकेला ही था, मै अकेला ही था||

बिगत बीस बरसो मे
कुछ नये रिस्ते बने थे
अचानक उन सबसे दूर
हम चल तो दिए थे
कुछ परिवार की अपेछाए
कुछ सपनो का ध्यान
जिसकी खातिर छोड़ा था
मैने अपना शहर और मकान
तब घर से दूर अन्जानो के बीच
मै अकेला ही था, मै अकेला ही था||

महफ़िल भरी हुई थी
मंच पर मै अकेला था
मेरे सामने भीड़ का
जैसे एक मेला था
मुख से कुछ शब्‍द बहे
और था चारो और कोलाहल
तालियो के स्वर से
गूँजायमान था पूरा माहौल
पर जब मंच से उतरा सिर उँचा करके तब
मै अकेला ही था, मै अकेला ही था||

भीड़ के साथ होते हुए भी
तन्हा ही सफ़र था अब
फिर से साथ आए है
मेरे जानने वाले जब
मेरी मिट्टी से बोल रहे थे
मुझसे वो बोले ही कब
उस वक़्त हस रहा था मै
पर रो रहे थे  सब
नभ का अवलोकन कर उस अंतिम सफ़र मे
मै अकेला ही था, मै अकेला ही था||

उनसे जब मेरी नज़र मिली

उनसे जब मेरी नज़र मिली
दिल मे मच गयी खलबली||

पर्दे ने चाँद छिपाया था
जिसे देखकर दिल भरमाया था
अब तक जो खामोश था दिल
वो गीत प्रेम के गाया था
दफ़न हो चुका था जो सैलाब
वो उमड़ के वापस आया था
जैसे की दरवाजे पर दस्तक देने
कोई नया मेहमान आया था
मेरी मायूशी मे जैसे कोई खुशी घुली
उनसे जब मेरी नज़र मिली ......

शाम का वक़्त हसीन था
मौसम भी रंगीन थी
दिल भी खामोश था
मुझको भी होश था
ना जाने फिर क्या हो गया
मै जाने कहा खो गया
रुख़ से पर्दा हटा
मै वही खो गया
एक पल भी ना मेरी नज़र हिली
उनसे जब मेरी नज़र मिली .......

उन नज़रो मे कुछ तो जादू था
जो दिल हुआ बक़ाबू था
मुस्कराहट दिल को मिली थी
जैसे जख्म को राहत मिली थी
लगा जैसे कुछ खो गया है
या कुछ पाने की चाहत मिली थी
अरसे बाद वो पल लोटने वाला है
ऐसी मेरे दिल को आहट लगी थी
लंबे इंतेजार के बाद दिल की खिड़की खुली
उनसे जब मेरी नज़र मिली .......

और वो कुछ ऐसे थी कि
दो नयन सुसोभित थे ऐसे
जैसे श्याम चरण मे रखे कमल
ओज भरा मुख रहा चमक
जैसे दुग्ध अनछुए रहे धवल
साँसे सुंगंधित हो रही ऐसे
जैसे पुष्पो का कोई उपवन
काया की तुलना ही क्या
जैसे ब्रह्मांड का समस्त धन||
उसे  देख मेरे दिल की धड़कन थम चली
उनसे जब मेरी नज़र मिली .......

Thursday 1 January 2015

मेरा रखवाला सबसे बड़ा

मेरा रखवाला सबसे बड़ा
हर पल वो मेरे साथ खड़ा||

मुझको फिर क्या चिंता है
जब उनका हाथ रखा है
उनको तो सब सुलभ है
जिसमे हो मेरी भलाई
करते है प्रभु वो सदा ही
मुझको तो रहना है कृपा की छाया मे .....
मेरा रखवाला............

जब प्रभु के दर मे जाता
देख के मुझको आता
प्रभुजी यो मुझसे कह रहे है
दुखो से मत घबराना
बस मुझको आवाज़ लगाना
रक्षा करूँगा तेरी तूफ़ानो मे....
मेरा रखवाला............

बचपन से इनको जाना
इनको ही अपना माना
ये मेरे प्राणो के आधार है
जब मन मे कुछ दुविधा हो
आकर इनको बतलाना
तेरे सब काम होंगे इशारो मे...
मेरा रखवाला............