Sunday 15 November 2015

प्रमोशन माँगूँगा नही

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

वक़्त पर आ जाऊँगा,
        वक़्त से ना जाऊँगा
वक़्त ज़्यादातर मैं अपना
       ऑफीस में ही बिताऊँगा
हर दिन करूँगा काम पर
       रविवार जागूंगा नही||
 प्रमोशन माँगूँगा  नही...

ज़िम्मेदारियाँ सारी संभालूँगा
       जो भी तुम मुझसे कहो
पर लघुता ना तुम मेरी छुओ,
       हो मैनेजर तो बने रहो
इस हृदय की पीर है जो
       उसको त्यागूंगा नही||
 प्रमोशन माँगूँगा  नही...

रेटिंग A पाने की होड़ में
       मैं भी खड़ा हूँ दौड़ में,
यही पाने की लिए क्या
       आया हूँ परिवार छोड़ मैं|
पर किसी के अश्रु पर
       खुशी चाहूँगा नही||
 प्रमोशन माँगूँगा  नही...

हर बार जो मुझको मिला
       उसका नही मुझको गिला
लाखो लहरे टकराई
       किंतु कब पर्वत हिला
कर्तव्य अडिग पर्वत सा
       छोड़ भांगूँगा नही|
 प्रमोशन माँगूँगा  नही...