Monday 30 March 2015

चाह है कि कुछ और पल रह लू मैं माँ के साथ आज

दफ़्तर से छुट्टी लेकर
जब भी घर जाता हूँ मैं
मुस्करा देती है माँ
और मर जाता हूँ मैं||

रेत से दरिया किनारे
लिखे वादो सा हूँ मैं
आता है झोका हवा का
और उड़ जाता हूँ मैं||

माँ पिता भाई बहिन
सबको मुझसे कुछ उमीद है
देखता हूँ उनके चेहरे
और डर जाता हूँ मैं||

जिम्मेदारियो का बोज़ हैं
सागर की लहरो की तरह
क्यो छोड़ कश्ती का सहारा
लहरो मे उतर जाता हूँ मैं||

समेट कर दुनिया की ताक़त
माँ से गले मिलता मैं
देख कर दो बूँद आँखो मे
बिखर जाता हूँ मैं||

चाह है कि कुछ और पल
रह लू मैं माँ के साथ आज,
सोच ये किसी मोड़ पर
फिर ठहर जाता हूँ मैं||

आज तो मैं जा रहा
अगली बार जल्दी लौटूँगा
कुछ इन विचारो के साथ
खुद से ही लड़ जाता हूँ मैं||

Monday 16 March 2015

जीवन और मृत्यु

जिस दिन मैने जन्म लिया
जिस दिन मैने जीवन पाया|
मृत्यु प्रेयशी ने भी हसकर
मुझे उसी दिन से अपनाया||

मेरी आयुष की माला मे
स्वासो के सुंदर से मोती
जीवन देता रहा नियति
हँस हंसकर उनको रही पिरोती||

किन्तु मृत्यु ने साथ-साथ ही
लेकर उन्हे मसल डाला है|
स्वासो की जो मिली धरोहर
उसने उसे कुचल डाला है||

मेरी द्वार देहरी पर ही
दोनो का व्यवहार रहा है|
पल-पल मे लेने-देने का
दोनो मे व्यापार रहा है||

जीवन और मृत्यु दोनो कब
होकर अलग-अलग चलते है|
दोनो मेरे साथ-साथ है
दोनो साथ-साथ पलते है||

इसीलिए तो मुझे मृत्यु से
सच मानो कोई द्रोह नही है
और सत्य यह भी है मुझको
जीवन से कुछ मोह नही है||