Wednesday 5 July 2017

कोई सहारा तो हो

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

मिले नज़र फिर झुके नज़र, कोई इशारा तो हो
यो ही सही जीने का मगर, कोई सहारा तो हो ||

स्कूल दफ़्तर परिवार सबको हिस्सा दे दिया
जिसको अपना कह सके, कोई हमारा तो हो || 

उलझ गये है भँवर मे और उलझे ही जा रहे 
कोई राह नयी निकले, कोई किनारा तो हो || 

टूटे हुए सितारो से माँगते है सब फरियादें 
कुछ हम भी मांग ले, कोई सितारा तो हो ||

तुम्हे देख हर कोई नज़रिया बदल लेता है 
हम भी बदल .जाए, कोई नज़ारा तो हो || 

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