Saturday 19 May 2018

जब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं

 जब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं

कितना कुछ बदल जाता है
सारी दुनिया एक बंद कमरे में सिमिट जाता है
सारी संसार कितना छोटा हो जाता है

मैं देख पता हूँ, धरती के सभी छोर
देख पाता हूँ , आसमान के पार
छू पाता हूँ, चाँद तारों को मैं
महसूस करता हूँ बादलो की नमी
नहीं बाकी कुछ अब जिसकी हो कमी
जब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं ....

पहाड़ो को अपने हाथों के नीचे पाता हूँ
खुद कभी नदियों को पी जाता हूँ
रोक देता हूँ कभी वक़्त को आँखों में
कभी कितनी सदियों आगे निकल आता हूँ
जब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं ....

कमरे की मेज पर ब्रह्माण्ड का ज्ञान
फर्श पर बिखरे पड़े है अनगिनित मोती
ख़ामोशी में बहती सरस्वती की गंगा
धुप अँधेरे में बंद आँखों से भी देखता हूँ
हर ओर से आता हुआ एक दिव्य प्रकाश
जब भी तुम्हारे पास आता हूँ मैं .... 

Wednesday 14 March 2018

खुदखुशी के मोड़ पर

जिंदगी बिछड़ी हो तुम तन्हा मुझको छोड़ कर 
आज मैं बेबस खड़ा हूँ, खुदखुशी के मोड़ पर || 

जुगनुओं तुम चले आओ, चाहें जहाँ कही भी हो 
शायद कोई रास्ता बने तुम्हारी रौशनी को जोड़ कर || 


जानता हूँ कुछ नहीं मेरे अंदर जो मुझे  सुकून दे 
फिर भी जोड़ रहा हूँ  मैं खुद ही खुद को तोड़ कर || 

जिस्म को ढकने को हर रोज बदलता हूँ लिबास 
रूह पर  नंगी है कब से मेरे बदन को ओढ़ कर || 

#शिवदत्त श्रोत्रिय

Thursday 15 February 2018

जब से तुम गयी हो

हर रात जो बिस्तर मेरा इंतेजार करता था,
जो दिन भर की थकान को ऐसे पी जाता था जैसे की मंथन के बाद विष को पी लिया भोले नाथ ने
वो तकिया जो मेरी गर्दन को सहला लेता था जैसे की ममता की गोद
वो चादर जो छिपा लेती थी मुझको बाहर की दुनिया से
आजकल ये सब नाराज़ है, पूरी रात मुझे सताते है
जब से तुम गयी हो …
रात भी परेशान है मुझसे, दिन भी उदास है
शाम तो ना जाने कितनी बेचैन करती है
वो गिटार जो हर रोज मेरा इंतेजार करता था आजकल मुझे देखता ही नही
आज चाय बनाई तो वो भी जल गयी, बहुत काली सी हो गयी
लॅपटॉप है जो कुछ पल के लिए बहला लेता है मुझे सम्हाल लेता है
पर वो भी फिर कुछ ज़्यादा साथ नही निभाता ||
सब 2 दिन मे बदल गये है मुझसे, जब से तुम गयी हो….