Saturday 15 July 2017

कैसे जान पाओगे मुझको

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

अगर तुमने प्रेम नही किया
तो कैसे जान पाओगे मुझको

किसी को जी भरकर नही चाहा
किसी के लिए नही बहाया
आँखों से नीर  रात भर
किसी के लिए अपना तकिया नही
भिगोया कभी
नही रही सीलन तुम्हारे कमरे
मे अगर कभी
तो कैसे जान पाओगे मुझको ||

हृदय के अंतः पटल से
अगर नही उठी कभी तरंगे
नही बिताई रात अगर
चाँद और तारो के साथ
नही सुनी कभी नज़्म
साहिर, फ़ैज़ ग़ालिब, मीर , मज़ाज़ की
तो फिर तुम ही बताओ
कैसे जान पाओगे मुझको ||

अगर तुम तड़पते  नही की जैसे
चातक तरसता है बारिश के लिए
या मछली पानी से बाहर आकर,
तुम एक समुंदर के बीच पानी चारो ओर
पर उसमे से पी नही सकते
दो घूट भी तुम, महसूस  नही  किया है
भीड़ मे भी अगर तन्हा नही होते
नही करते अगर बातें  खुद से
तो कैसे जान पाओगे मुझको ||

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