कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय
काम और उम्र के बोझ से झुकने लगा हूँ मैं
अनायास ही चलते-चलते अब रुकने लगा हूँ मैं
कितनी भी करू कोशिश खुद को छिपाने की
सच ही तो है, पिता के जैसा दिखने लगा हूँ मैं ||
काम और उम्र के बोझ से झुकने लगा हूँ मैं
अनायास ही चलते-चलते अब रुकने लगा हूँ मैं
कितनी भी करू कोशिश खुद को छिपाने की
सच ही तो है, पिता के जैसा दिखने लगा हूँ मैं ||