Sunday 23 July 2017

एक प्लेटफार्म है

शहर की भीड़ भाड़ से निकल कर
सुनसान गलियों से गुजर कर
एक चमकता सा भवन
जहाँ से गुजरते है, अनगिनत शहर |

एक प्लेटफार्म है, जो हमेशा ही
चलता रहता है
फिर भी
वहीं है कितने वर्षो से |

न जाने कितनो  की मंजिल है ये
और कितने ही पहुंचे है
यहाँ से अपनी मंजिल
पर हर कोई  बे-खबर है |

कुछ लोग दिन गुजारते है कहीं
फिर शाम को लौट कर
बिछाते है प्लेटफार्म पर एक चादर
ये बन  जाता है, सराय |

रात के अँधेरे में चमचमाता
कई शहर  इंतजार में
उसी इंतजार में शामिल
आज मेरा भी नाम  || 

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