Sunday 11 October 2015

विलक्षण मानव

मैने तुझको लिप्त है देखा
भोग विलास के प्रकारो में,
मैने तुझको जाते है देखा
    मंदिर मस्जिद गुरुद्वारो में |

भाई को भाई से लड़ते देखा
    लड़ते लड़ते मरते देखा
किसी अंजान की खातिर
    दुनिया से भी झगड़ते देखा |

देखा मैने तुझको खेलते
  नारी के अधिकारो से
कभी भरी कलाई देखी
  राखी के त्योहारो से |

मैने प्यार के धोखे में
अस्मत को भी लूटते देखा
बड़ी बड़ी दीवारो बीच
  नाज़ुक दिल को टूटते देखा |

एक मा को मैने रोते देखा
    बेटो को भूखे सोता देखा
दूर कही एक मंदिर में
    भंडारा भी होते देखा |

कई संस्कृति मिटाते देखा
    एक नई संस्कृति बनाते देखा
किसी और के सपनो पर
    सपनो का महल बनाते देखा |

किसी की खातिर जाल बिछाया
        उसी जाल में फसते देखा
कभी कभी तो बिना बात के
      रोते और फिर हसते देखा |