Sunday 16 August 2015

जैविक खेती

सूख रहा धरती का कण -2
       हरियाली मिटती जाती है,
शस्य श्यामला वसुंधरा की
       सुंदरता घटती जाती है||

गगन पवन मई जहर घुल रहा
      भूमि बन रही ऊसर बंजर,
रही धरोहर जो हम सबकी
      वही संपाति हो रही जर्जर||

प्राकृतिक संपदा उजड़ रही
       टूट रहा माटी से नाता,
धन की चाहत में मनुज का
       प्रेम धरती से घटता जाता||

धधकती है छाती धरती की
       वर्षा ने मुख मोड़ लिया,
हरियाली छाने के इंतेजार से
       पक्षियो ने नाता तोड़ लिया||

जैविक खेती अपनाने से
      जीवन सुखमय हो जाएगा
सम्मान भी वापस लौटेगा
       अमृतरस फिर भर जाएगा||

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