Sunday 4 January 2015

उनसे जब मेरी नज़र मिली

उनसे जब मेरी नज़र मिली
दिल मे मच गयी खलबली||

पर्दे ने चाँद छिपाया था
जिसे देखकर दिल भरमाया था
अब तक जो खामोश था दिल
वो गीत प्रेम के गाया था
दफ़न हो चुका था जो सैलाब
वो उमड़ के वापस आया था
जैसे की दरवाजे पर दस्तक देने
कोई नया मेहमान आया था
मेरी मायूशी मे जैसे कोई खुशी घुली
उनसे जब मेरी नज़र मिली ......

शाम का वक़्त हसीन था
मौसम भी रंगीन थी
दिल भी खामोश था
मुझको भी होश था
ना जाने फिर क्या हो गया
मै जाने कहा खो गया
रुख़ से पर्दा हटा
मै वही खो गया
एक पल भी ना मेरी नज़र हिली
उनसे जब मेरी नज़र मिली .......

उन नज़रो मे कुछ तो जादू था
जो दिल हुआ बक़ाबू था
मुस्कराहट दिल को मिली थी
जैसे जख्म को राहत मिली थी
लगा जैसे कुछ खो गया है
या कुछ पाने की चाहत मिली थी
अरसे बाद वो पल लोटने वाला है
ऐसी मेरे दिल को आहट लगी थी
लंबे इंतेजार के बाद दिल की खिड़की खुली
उनसे जब मेरी नज़र मिली .......

और वो कुछ ऐसे थी कि
दो नयन सुसोभित थे ऐसे
जैसे श्याम चरण मे रखे कमल
ओज भरा मुख रहा चमक
जैसे दुग्ध अनछुए रहे धवल
साँसे सुंगंधित हो रही ऐसे
जैसे पुष्पो का कोई उपवन
काया की तुलना ही क्या
जैसे ब्रह्मांड का समस्त धन||
उसे  देख मेरे दिल की धड़कन थम चली
उनसे जब मेरी नज़र मिली .......

2 comments: