Monday 30 March 2015

चाह है कि कुछ और पल रह लू मैं माँ के साथ आज

दफ़्तर से छुट्टी लेकर
जब भी घर जाता हूँ मैं
मुस्करा देती है माँ
और मर जाता हूँ मैं||

रेत से दरिया किनारे
लिखे वादो सा हूँ मैं
आता है झोका हवा का
और उड़ जाता हूँ मैं||

माँ पिता भाई बहिन
सबको मुझसे कुछ उमीद है
देखता हूँ उनके चेहरे
और डर जाता हूँ मैं||

जिम्मेदारियो का बोज़ हैं
सागर की लहरो की तरह
क्यो छोड़ कश्ती का सहारा
लहरो मे उतर जाता हूँ मैं||

समेट कर दुनिया की ताक़त
माँ से गले मिलता मैं
देख कर दो बूँद आँखो मे
बिखर जाता हूँ मैं||

चाह है कि कुछ और पल
रह लू मैं माँ के साथ आज,
सोच ये किसी मोड़ पर
फिर ठहर जाता हूँ मैं||

आज तो मैं जा रहा
अगली बार जल्दी लौटूँगा
कुछ इन विचारो के साथ
खुद से ही लड़ जाता हूँ मैं||

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