न महलो की, जन्नत की चाहत हो कभी
सुखद स्वास्थ का एक कण चाहता हूँ ॥
हो जीवन सुगम और मिट जायें सब अधम
हर किसी के खातिर ऐसा कल चाहता हूँ
काम, क्रोध, मोह, मद ये जग के शिकारी
इनकी नजरों से बचा एक मन चाहता हूँ ॥
आँखे बंद करके जो बस तुझको निहारे
तुम्हारे दर्शन को मैं ऐसे नयन चाहता हूँ ॥
जीवन के सफर में तुम, कभी मिलो ना मिलो
अंतिम सफर में हो सम्मुख, वह क्षण चाहता हूँ ॥ ... शिवदत्त श्रोत्रिय
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