Sunday 28 February 2016

गम नही होते

         कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

अगर तुम नही होती
        या फिर हम नही होते,
फिर जिंदगी मे मेरी
        इतने गम नही होते ||

मई जून की गरमी मे
        जलता है जब बदन,
कैसे कह दूँ कि अश्क
        मेरे नम नही होते||

जो मिलते है घाव
        फक़्त मोहब्बत मे,
इन जख़्मो के कही
        मरहम नही होते||

जो आशिक़ी मे तेरी
        भरे कलम ने पन्ने,
कितना भी जला दूं मै
        ये कम नही होते ||


जब से मैने जाना
        "माँ" क्या होती है,
ख्वाबो मे मेरी तुम
        हर दम नही होते||

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