Sunday 21 February 2016

ये बार बार लिख दूँ


          कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

तिरछी हुई नज़र पर
ये बार बार लिख दूँ,
तेरी हर एक अदा पर
गज़ले हज़ार लिख दूँ ||

हर दिन तेरी कशिश मे
कुछ इस तरह से खोया,
लिखना चाहूँ मे जुमे रात
और सोमवार लिख दूँ ||

तेरे लिए मोहब्बत मे
क्या क्या लुटाने आया
कोई पूछ ले अगर तो
          मैं बेशुमार लिख दूँ ||

नफ़रत भारी निगाहो से
सबको देखती है दुनिया,
जो तुझको देख लूँ
तो प्यार प्यार लिख दूँ ||

एक बार तो ठहरो
मंज़िल के रास्ते मे,
चलती हुई निगाहो पर
बस इंतेजार लिख दूँ ||

तिरछी हुई नज़र पर
ये बार बार लिख दूँ,
तेरी हर एक अदा पर
गज़ले हज़ार लिख दूँ ||

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