कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय
अगर तुम नही होती
या फिर हम नही होते,
फिर जिंदगी मे मेरी
इतने गम नही होते ||
मई जून की गरमी मे
जलता है जब बदन,
कैसे कह दूँ कि अश्क
मेरे नम नही होते||
जो मिलते है घाव
फक़्त मोहब्बत मे,
इन जख़्मो के कही
मरहम नही होते||
जो आशिक़ी मे तेरी
भरे कलम ने पन्ने,
कितना भी जला दूं मै
ये कम नही होते ||
जब से मैने जाना
"माँ" क्या होती है,
ख्वाबो मे मेरी तुम
हर दम नही होते||
अगर तुम नही होती
या फिर हम नही होते,
फिर जिंदगी मे मेरी
इतने गम नही होते ||
मई जून की गरमी मे
जलता है जब बदन,
कैसे कह दूँ कि अश्क
मेरे नम नही होते||
जो मिलते है घाव
फक़्त मोहब्बत मे,
इन जख़्मो के कही
मरहम नही होते||
जो आशिक़ी मे तेरी
भरे कलम ने पन्ने,
कितना भी जला दूं मै
ये कम नही होते ||
जब से मैने जाना
"माँ" क्या होती है,
ख्वाबो मे मेरी तुम
हर दम नही होते||
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