कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय
तिरछी हुई नज़र पर
ये बार बार लिख दूँ,
तेरी हर एक अदा पर
गज़ले हज़ार लिख दूँ ||
हर दिन तेरी कशिश मे
कुछ इस तरह से खोया,
लिखना चाहूँ मे जुमे रात
और सोमवार लिख दूँ ||
तेरे लिए मोहब्बत मे
क्या क्या लुटाने आया
कोई पूछ ले अगर तो
मैं बेशुमार लिख दूँ ||
नफ़रत भारी निगाहो से
सबको देखती है दुनिया,
जो तुझको देख लूँ
तो प्यार प्यार लिख दूँ ||
एक बार तो ठहरो
मंज़िल के रास्ते मे,
चलती हुई निगाहो पर
बस इंतेजार लिख दूँ ||
तिरछी हुई नज़र पर
ये बार बार लिख दूँ,
तेरी हर एक अदा पर
गज़ले हज़ार लिख दूँ ||
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