Monday 28 November 2016

तुझे कबूल इस समय

कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

परिस्थितियाँ नही है मेरी माकूल इस समय
तू ही बता कैसे करूँ तुझे कबूल इस समय ||

इशारो मे बोलकर कुछ गुनहगार बन गये है
लब्जो से कुछ भी बोलना फ़िज़ूल इस समय ||

परिवार मे भी जिसकी बनती थी नही कभी
क्यो खुद को समझता है मक़बूल इस समय ||

इंसान से इंसान की इंसानियत है लापता
दिखता नही खुदा मुझे तेरा रसूल इस समय ||

जो ना आए कभी कितने कमाल के दिन थे
याद उनको करके करेंगे हम भूल इस समय ||

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