************* अधिकार **************
तुम ना-२ करके हामी भरना चाहती हो प्रिये
ये मुझे कैसा प्यार करना चाहती हो प्रिये
एक मैं हूँ जो तुन्हे दिन रात सोचता हूँ
खुद को कभी तो कभी रात को कचोटता हूँ ||
सुबह कभी मंदिर दिखे तो लगे की मेरी प्रार्थना तुम हो
कोई कहे कि ईश्वर भी है तो मेरी उपासना तुम हो
मौसम फूल भर देखू तो लगता है कि मेरी अवधारणाएं तुम हो
शाम ढ़ले जब तुम्हारा रूप हावी होता है मुझ पर
तो लगता है कि मेरी वासनाएं तुम हो||
मगर तुम सुनो योही ना सह लेना
सपथ है तुम्हे तुम कह देना
कि संकोचवश तुम मुझसे बतियाती रहो
मैं अपनी मर्यादाये लांघता रहू और तुम अपनी नजरो से गिरती रहो||
मैं और मेरी कल्पनायें जाने कहा सोयी रही
चेतना थी जो मूल में जाने कहा खोयी रही
मेँ बन भंवरा मद यौवन मेँ डोलता
अपने शब्दों से किसी प्रियसी कि गरिमा को तोलता
मैंने अपनी संवेदनाये क्यों सौंदर्य तक सीमित रखीं
पिता जी मेँ शर्मिदा हूँ मैंने आप पर कविता क्यों नहीं लिखी||
तुम ना-२ करके हामी भरना चाहती हो प्रिये
ये मुझे कैसा प्यार करना चाहती हो प्रिये
एक मैं हूँ जो तुन्हे दिन रात सोचता हूँ
खुद को कभी तो कभी रात को कचोटता हूँ ||
सुबह कभी मंदिर दिखे तो लगे की मेरी प्रार्थना तुम हो
कोई कहे कि ईश्वर भी है तो मेरी उपासना तुम हो
मौसम फूल भर देखू तो लगता है कि मेरी अवधारणाएं तुम हो
शाम ढ़ले जब तुम्हारा रूप हावी होता है मुझ पर
तो लगता है कि मेरी वासनाएं तुम हो||
मगर तुम सुनो योही ना सह लेना
सपथ है तुम्हे तुम कह देना
कि संकोचवश तुम मुझसे बतियाती रहो
मैं अपनी मर्यादाये लांघता रहू और तुम अपनी नजरो से गिरती रहो||
मैं और मेरी कल्पनायें जाने कहा सोयी रही
चेतना थी जो मूल में जाने कहा खोयी रही
मेँ बन भंवरा मद यौवन मेँ डोलता
अपने शब्दों से किसी प्रियसी कि गरिमा को तोलता
मैंने अपनी संवेदनाये क्यों सौंदर्य तक सीमित रखीं
पिता जी मेँ शर्मिदा हूँ मैंने आप पर कविता क्यों नहीं लिखी||
nice1
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ReplyDeleteitna achcha kiskeliye likhteho.
ReplyDeletebus sab ek khwab hai, usi mai ji rahe hai.
DeleteGreat Poem kafi accha hai....
ReplyDeletethanks brother.....
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