Thursday 12 January 2017

माँ-बाप के पैर छुए हुआ एक जमाना

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

छोड़ा घर सोच कर, किस्मत आजमाना 
पर क्यों ना लौट मैं, कोई करके बहाना 
जन्नत ढूंढता था, जन्नत से दूर होकर 
 माँ-बाप के पैर छुए हुआ एक जमाना ॥

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