कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय
छोड़ा घर सोच कर, किस्मत आजमाना
पर क्यों ना लौट मैं, कोई करके बहाना
जन्नत ढूंढता था, जन्नत से दूर होकर
माँ-बाप के पैर छुए हुआ एक जमाना ॥
छोड़ा घर सोच कर, किस्मत आजमाना
पर क्यों ना लौट मैं, कोई करके बहाना
जन्नत ढूंढता था, जन्नत से दूर होकर
माँ-बाप के पैर छुए हुआ एक जमाना ॥
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