Sunday 4 December 2016

जब से बदल गया है नोट

कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

एक रात समाचार है आया
पाँच सौ हज़ार की बदली माया
५६ इंच का सीना बतलाकर
जाने कितनो की मिटा दी छाया
वो भी अंदर से सहमा सहमा
पर बाहर से है अखरोट
जब से बदल गया है नोट....

व्यापारी का मन डरा डरा है
उसने सोचा था भंडार भरा है
हर विधि से दौलत थी कमाई
लगा हर सावन हरा भरा है
एक ही दिन मे देखो भैया
उसको कैसी दे गया चोट
जब से बदल गया है नोट..

नेता को है रोते पाया
एक दम सब कुछ खोते पाया
रातो को बैठ कर जाग रहा है
कल तक था दिन मे सोते पाया
क्या बाँटेगा अब चुनाव मे
आए कैसे जनता का वोट
जब से बदल गया है नोट...

एक ग़रीब पगार था लाया
मालिक ने हज़ार का नोट थमाया
नोट बड़ा है सोचा था उसने
कई दिनो तक तकिये मे छिपाया
आज गया बाजार मे लेकर
ना राशन मिला ना लंगोट
जब से बदल गया है नोट...

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