Tuesday 17 May 2016

कारवाँ गुजर गया

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
कत्ल करने वाले, अख़बार देखते रहे|

तेरी रूह को चाहा, वो बस मै था
जिस्म की नुमाइश, हज़ार देखते रहे||

मैने जिस काम मे ,उम्र गुज़ार दी
कैलेंडर मे वो, रविवार देखते रहे||

जिस की खातिर मैने रूह जला दी
वो आजतक मेरा किरदार देखते रहे||

सूखे ने उजाड़ दिए किसानो के घर
वो पागल अबतक सरकार देखते रहे ||

कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे

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