Thursday, 19 May 2016

दीवाने की बातें क्यूँ

वो शायर था, वो दीवाना था, दीवाने की बातें क्यूँ

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

मस्ती का तन झूम रहा, मस्ती मे मन घूम रहा
मस्त हवा है मस्त है मौसम, मस्ताने की बाते क्यो

इश्क किया है तूने मुझसे, किया कोई व्यापार नही
सब कुछ खोना तुमको पाना, डर जाने की बाते क्यो

बड़ी दूर से आया है, तुझे बड़ी दूर तक जाना है
मंज़िल देखो आने वाली, रुक जाने की बाते क्यो

रूठे दिल को मिला रहा, गीतो से अपने जिला रहा
घर-2 दीप जलाकर फिर, जल जाने की बाते क्यो

होटो के प्यालो मे डूबा, तेरे मद मे अब तक झूमा
नजरो मे नशा लूटे है अदा, मयखाने की बाते क्यो|

वो शायर था, वो दीवाना था, दीवाने की बातें क्यूँ||

Tuesday, 17 May 2016

कारवाँ गुजर गया

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
कत्ल करने वाले, अख़बार देखते रहे|

तेरी रूह को चाहा, वो बस मै था
जिस्म की नुमाइश, हज़ार देखते रहे||

मैने जिस काम मे ,उम्र गुज़ार दी
कैलेंडर मे वो, रविवार देखते रहे||

जिस की खातिर मैने रूह जला दी
वो आजतक मेरा किरदार देखते रहे||

सूखे ने उजाड़ दिए किसानो के घर
वो पागल अबतक सरकार देखते रहे ||

कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे

Sunday, 15 May 2016

अब शृंगार रहने दो

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

जैसी हो वैसी चली आओ
अब शृंगार रहने दो|

अगर  माँग हे सीधी
या फिर जुल्फे है उल्झी
ना करो जतन इतना
समय जाए लगे सुलझी
दौड़ी चली आओ तुम,
ज़ुल्फो को बिखरा रहने दो

जैसी हो वैसी चली आओ
अब शृंगार रहने दो|

कुछ सोई नही तुम
आधी जागी चली आओ
सुनकर मेरी आवाज़
ऐसे भागी चली आओ
जल्दी मे अगर छूटे कोई गहना,
या मुक्तहार रहने दो |


जैसी हो वैसी चली आओ
अब शृंगार रहने दो|

बिना भंवरे क्या रोनक
गुल की गुलशन मे
ना टूटे साथ जन्मो का
ज़रा सी अनबन मे
गुल सूखे ना डाली पर,
इसे गुलजार रहने दो||

जैसी हो वैसी चली आओ
अब शृंगार रहने दो|

Wednesday, 11 May 2016

अनजान लगता है

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

अब इन राहो पर सफ़र आसान लगता है
जो गुमनाम है कही वही पहचान लगता है||

जिस शहर मे तुम्हारे साथ उम्रे गुज़ारी थी
कुछ दिन से मुझको ये अनजान लगता है||

कपड़ो से दूर से उसकी अमीरी झलकती है
मगर चेहरे से वो भी बड़ा परेशान लगता है||

मुझको देख कर भी तू अनदेखा मत कर
तेरा मुस्करा देना भी अब एहसान लगता है||

मिलते है घर मे हम सब होली दीवाली पर
सगा भाई भी मुझको अब मेहमान लगता है||

जिंदा थी तो कभी माँ का हाल ना पूछा
तस्वीर मे अब चेहरा उसे भगवान लगता है||

Tuesday, 10 May 2016

वो कैसा होगा शहर

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

जहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर
कैसी होगी ज़मीन, वो कैसा होगा शहर

हाथो मे हाथ रहे, तू हरदम साथ रहे
कुछ मै तुझसे कहूँ, कुछ तू मुझसे कहे
मै सब कुछ सहुं, तू कुछ ना सहे
सुबह शुरू तुझसे, ख़त्म हो तुझपे सहर
जहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ...

कुछ तुम चलोगी, तो कुछ मै चलूँगा
कभी तुम थकोगी, तो कभी मै रुकुंगा
मंज़िल है एक ही, क्यो अकेला बढ़ुंगा
चलते रुकते योही, कट जाएगा सफ़र
जहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ...

बात मे बाते हो, रात मे फिर राते हो
गम आए ना कभी, खुशियो की बरसाते हो
नज़रो मे हो चेहरा तेरा, ख्वाबो मे भी मुलाक़ते हो
साथ रहने की कोई कसमे ना हो, ना हो बिछड़ने का डर
जहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ..

Sunday, 1 May 2016

मशहूर हो गये

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

जो भी आए पास
           सब दूर हो गये
तोड़ा हुए बदनाम
           तो मशहूर हो गये||

कल तक जो दूसरो से
          माँगकर के जिंदा थे
जीता चुनाव आज जो
          वो हुजूर हो गये||

हम भी तो कल तक
          दफ़न थे चन्द पन्नो मे
बाजार मे बिके जो
          सबको मंजूर हो गये||

पहाड़ो से टकराकर के
          मैने चलना सीखा था
सीसे के दिल के आंगे
          हम चकनाचूर हो गये||

तुमको बड़ा गुमान था
          हुस्न की जागीर पर
किसी की आँखो के
          हम भी नूर हो गये||