Monday 18 August 2014

जिंदगी ऐसी ना रही और ना वैसी रही

जिंदगी ऐसी ना रही और ना वैसी रही
तुमसे मिलकर ना ये पहले जैसी रही
तुम जो कहती हो, वही लगता है सही
तुम ना मिलती तो, रह जाती बाते अनकही||

तुम जो दिखाती हो अब दिखता है वही
पर अभी तक तुम मिली क्यो नही
छुपी हो यही मेरे आस-पास कही
तुम्हे पाकर के करना है मुझे अनकही||

जब सोचता हूँ कि मुझे तुम मिलोगी कभी
तो लगता है कि जैसे मिल गयी हर खुशी
पर डरता हूँ कि तुम खो ना जाओ कभी
मेरी कहानी ना रह जाए  फिर अनकही||

आँखो मै मेरे जो है सपने बसे
डरता हूँ न सुनके ये दुनिया  हसे
मेरा हर सपना है तुमसे जुड़ा
आज या कल हुमको मिलाएगा खुदा||

सोचकर बस यही मै अब जी रहा हूँ
भूल भी चुका हूँ की खुद मै कहा हूँ
लौट आ तू अब सबकुछ छोड़कर
मिल जा मुझे अब किसी मोड़ पर||

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