कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय
************ अब कोई नहीं होगा ************
सुना है कि तुम जा रही हो,
अब सामने नजरो के मेरे कोई नहीं होगा
हर दिन जो तुम्हे देखा करता था
पर लगता है वैसा नजारा अब कोई नहीं होगा||
कभी नजर उठा कर देखा करते थे
तो कभी नजर झुका कर छिप जाते थे
अचानक लगता था कि जैसे
सारे नज़ारे एकदम रुक जाते थे ||
पर लगता था कि ऐसा खेल अब कोई नहीं होगा......
तुम जब भी मुझको देख कर मुस्करा जाती थी
मुझे तो बस देखना होता था और तुम दिख जाती थी
मुझे खुस रहने का कारण मिल जाता था
एक मुरझाया हुआ सा कमल खिल जाता था ||
पर लगता है ऐसा कारण अब कोई नहीं होगा............
किसी से बिछड़ने पर दर्द होता है
पर कहाँ होता है? क्यों होता है?
कब होता है? कैसे होता है? समझ नहीं आता
कैसा ये दर्द है, क्यों नजर नहीं आता ||
पर लगता है अब ऐसा दर्द अब कोई नहीं होगा......
तुम्हे देखा तो लगा कि मेरी तलाश ख़त्म हो गयी थी
पर न जाने कहाँ से तुम्हारे जाने कि खबर मिली थी
तुम विदाई चाहती थी पर हम तो तुम्हे दिल में बसा चुके थे
पर लगता है इस दिल में अब कोई नहीं होगा ..........
Wah Ustad Wah
ReplyDeleteKeep writing
:)
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