Sunday 28 May 2017

पिता के जैसा दिखने लगा हूँ मैं

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

काम और उम्र के बोझ से झुकने लगा हूँ मैं
अनायास ही चलते-चलते अब रुकने लगा हूँ मैं
कितनी भी करू कोशिश खुद को छिपाने की
सच ही तो है, पिता के जैसा दिखने लगा हूँ मैं || 

No comments:

Post a Comment