Tuesday 21 February 2017

अब आदाब करके

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

मेरे गुनाहों को अब नजर अंदाज करके
बनाओ तुम मुझे, खुद को खराब करके ||

किस कदर टूट चुका है अब वो देख
रात गुजारता है, जिस्म को शराब करके ||

अपने हिस्से की चाहत चाहता हर कोई
चैन कहाँ है ,मोहब्बत बे- हिसाब करके ||

उजड़ा हुआ है यहाँ हर साख का मंजर
सोचा चमन से गुजरेगा सब पराग करके ||

ये शहर बड़ी जल्दी इतना बड़ा हो गया
मिलता नहीं गले कोई अब आदाब करके ||

तेरी हर राह में रोशनी तभी आयी है
माँ-बाप ने जलाया खुद को चराग़ करके ||

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