Saturday, 25 February 2017

आया था चाँद पानी पर

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

किसी ने उपमा दी इसे
महबूबा के चेहरे की,
किसी ने कहा ये रात का साथी है

कभी  बादल मे छिपकर
लुका छिपी करता तो ,
मासूम सा बनकर सामने आ जाता कभी

सदियों से बस वही है पर फिर भी
हर दिन कुछ बदल जाता है
अमावस्या से पूर्णिमा तक जीता है एक जिंदगी

खामोश है, बेजुबान रहा हमेशा
पर गवाही दे रहा है  
प्रेमी और प्रेमिका के मिलन की उस रात की

कौसल्या से बालक राम ने भी
जिद की थी चाँद की
झट फलक से उतर आया था चाँद पानी पर  ||

हर कहीं है जिक्र उसका 
सितारों ने भी घेरा है 
फिर भी लगता है चाँद आसमान में अकेला है ॥ 

Tuesday, 21 February 2017

अब आदाब करके

कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय

मेरे गुनाहों को अब नजर अंदाज करके
बनाओ तुम मुझे, खुद को खराब करके ||

किस कदर टूट चुका है अब वो देख
रात गुजारता है, जिस्म को शराब करके ||

अपने हिस्से की चाहत चाहता हर कोई
चैन कहाँ है ,मोहब्बत बे- हिसाब करके ||

उजड़ा हुआ है यहाँ हर साख का मंजर
सोचा चमन से गुजरेगा सब पराग करके ||

ये शहर बड़ी जल्दी इतना बड़ा हो गया
मिलता नहीं गले कोई अब आदाब करके ||

तेरी हर राह में रोशनी तभी आयी है
माँ-बाप ने जलाया खुद को चराग़ करके ||

Wednesday, 15 February 2017

सुखद स्वास्थ का एक कण चाहता हूँ



न महलो की, जन्नत की चाहत हो कभी
सुखद स्वास्थ का एक कण चाहता हूँ ॥

हो जीवन सुगम और मिट जायें सब अधम
हर किसी के खातिर ऐसा कल चाहता हूँ

काम, क्रोध, मोह, मद ये जग के शिकारी
इनकी नजरों से बचा एक मन चाहता हूँ ॥

आँखे बंद करके जो बस तुझको निहारे
तुम्हारे दर्शन को मैं ऐसे नयन चाहता  हूँ ॥

जीवन के सफर में तुम, कभी मिलो ना मिलो
अंतिम सफर में हो सम्मुख, वह क्षण चाहता हूँ ॥   ...  शिवदत्त श्रोत्रिय