Tuesday, 25 October 2016

देश का बुरा हाल है||

कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

हर किसी की ज़ुबाँ पर बस यही सवाल है
करने वाले कह रहे, देश का बुरा हाल है||

नेता जी की पार्टी मे फेका गया मटन पुलाव
जनता की थाली से आज रूठी हुई दाल है||

राशन के थैले का ख़ालीपन  बढ़ने लगा
हर दिन हर पल हर कोई यहाँ बेहाल है||

पैसे ने अपनो को अपनो से दूर कर दिया
ग़रीबी मे छत के नीचे राजू और जमाल है||

आंशु बहा-बहा कर भी थकता कहाँ है वो
ये ग़रीब की अमीर आँखो का कमाल है||

Monday, 24 October 2016

सरहद

कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

सरहद, जो खुदा ने बनाई||
मछली की सरहद पानी का किनारा
शेर की सरहद उस जंगल का छोर
पतंग जी सरहद, उसकी डोर ||

हर किसी ने अपनी सरहद जानी
पर इंसान ने किसी की कहाँ मानी||

मछली मर गयी जब उसे पानी से निकाला
शेर का न पूछो, तो पूरा जंगल जला डाला ||
ना जाने कितनी पतंगो की डोर काट दी
ना जाने कितनी सरहदे पार कर दी ||

धीरे-२ खुदा की सारी खुदाई नकार दी
सरहदे बना के बोला दुनिया सवार दी

कुछ सरहदे रंग-रूप की, कुछ जाति-धर्म की
कुछ लिंग-भेद की, कुछ अमीरी ग़रीबी की......

धर्मो के आधार पर, मुल्क बना डाले
अपनो के ही ना जाने कितने घर जला डाले||

भाई ने आगन मे दीवार खीच सरहद बना डाली
चारपाई कैसे बाँटता इसलिए होली मे जला डाली||

हर तरफ इंसान की बनाई सरहदों का दौर है
ये ग़लती है हमारी, आरोपी नही कोई और है||

Wednesday, 19 October 2016

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है||

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

हर पहर, हर घड़ी रहता है जागता
बिना रुके बिना थके रहता है भागता
कुछ नही रखना है इसे अपने पास
सागर से, नदी से, तालाबो से माँगता
दिन रात सब कुछ लूटाकर, बादल
दाग काला दामन पर सहता यहाँ है||

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है...

हर दिन की रोशनी रात का अंधेरा
जिसकी वजह से है सुबह का सवेरा
अगर रूठ जाए चन्द  लम्हो के लिए
तम का विकराल हो जाएगा बसेरा
खुद जल के देता है चाँद को रोशनी
चाँद की तारीफ से पर जलता कहाँ है||

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है...

मुखहोटा है चेहरे पर, वो चेहरा नही है
सांसो पर उसकी भी पहरा वही है
हर एक सर्कस मे बनता है, जोकर
वो मुस्कराता है जैसे घाव गहरा नही है
हसता है वो दूसरो को हसाने की खातिर
गम उसका आँखो से बहता कहाँ है||

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है...

Thursday, 13 October 2016

कहीं कुछ भी नही है

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

सब कुछ है धोखा कुछ कहीं नही है
है हर कोई  खोया ये मुझको यकीं है
ना है आसमां ना ही कोई ज़मीं है
दिखता है झूठ है हक़ीकत नही है||

उपर है गगन पर क्यो उसकी छावं नही है?
है सबको यहाँ दर्द  मगर क्यो घाव नही है?
मै भी सो रहा हूँ, तू भी सो रहा है
ये दिवा स्वपन ही और कुछ भी नही है||

मैने बनाया ईश्वर, तूने भी खुदा बनाया
दोनो का नाम लेकर खुद को है मिटाया
क्या उतनी दूर है, उनको दिखता नही है
ये कहीं और होगे ज़मीन पर नही है||

एक बूँद आँखो से, दूसरी आसमां से
हसाते रुलाते दोनो आकर गिरी है
दोनो की मंज़िल, बस ये ज़मीं है
पानी है पानी और कुछ भी नही है || 

अदालत मे खुदा होगा


जलाल उल्लाह जब रोजे कयामत पर खड़ा होगा
ना जाने हम गुनहगारो का उस दम हाल क्या होगा||
करेंगे नॅफ्सी-नॅफ्सी और जितने भी है पेगेम्बर
मोहम्मद लेकर जब झंडा सिफायत का खड़ा होगा ||
इलाही करबला का खून जब ख़ातून मागेगी
क्या मालूम उस घड़ी उस पल क्या माजरा होगा||
कयामत आएगी एक दिन ज़मीं और आसमाँ ऊपर
मोहब्बत तख्त पर होगे अदालत मे खुदा होगा ||