Monday 6 June 2016

तेरे शहर मे गुज़ारी थी मैने एक जिंदगी


कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

तेरे शहर मे गुज़ारी थी मैने एक जिंदगी
पर कैसे कह दूं हमारी थी एक जिंदगी ||

जमाने से जहाँ मेने कई जंग जीत ली
वही मोहब्बत से हारी थी एक जिंदगी ||

मुझको ना मिली वो मेरा कभी ना थी
तुमने जो ठुकराई तुम्हारी थी जिंदगी ||

महल ऊँचा पर आंशु किसी के फर्स पर
तब मुझको ना गवारी थी एक जिंदगी ||

कलम की उम्र मे पत्थर उठा रही है
कितनी किस्मत बेचारी थी एक जिंदगी||

तेरे शहर मे गुज़ारी थी मैने एक जिंदगी..

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