Tuesday, 30 August 2016

क्या है किस्मत?

किस्मत
क्या है, आख़िर क्या है किस्मत?
बचपन से एक सवाल मन मे है, जिसका जबाब ढूंढ रहा हूँ|
बचपन मे पास होना या फेल हो जाना या फिर एक दो नंबर से अनुतीर्ण हो जाना, क्या ये किस्मत 
थी?
आपके कम पढ़ने के बाबजूद आपके मित्र के आपसे ज़्यादा नंबर आ जाना, क्या ये किस्मत थी?
स्कूल से लौटते हुए रास्ते मे कुछ पैसे सड़क पर मिल जाना और मित्रो को बताना, खुशी से पागल हो 
जाना, क्या ये किस्मत थी?क्लास मे सबसे प्रखर होने के, सभी प्रकार से मदो से दूर होने के बाबजूद 
कोई गर्लफ्रेंड ना होना, क्या ये किस्मत थी?


पर आज जब किस्मत को परिभाषित करना चाहता हूँ तो समझ नही आता क़ि इसे शब्दो मे कैसे 
वर्णित करूँ?


मेरे लिए तुम्हारी एक झलक ही तो किस्मत थी
जब तुम मुझे देख कर मुस्करा जाती थी, वो किस्मत थी
कुछ सपने इन आँखो ने सजाए थे, उन्हे साकार होते हुए देखना, किस्मत थी
जीवन के हर कदम पर, हर छोटे बड़े फ़ैसले पर मा-पिता का साथ मिला, ये किस्मत थी|


जब मे रास्ता भटक चुका था, चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा था, सभी दिशाए खो चुकी थी, तब तुम 
रोशनी की एक किरण बन कर मेरी पथ प्रदर्शक बनी, ये मेरे लिए किस्मत थी|
जब तुम्हे ढूंड-ढूंड कर थक चुका था, विश्वास, साहस, ज्ञान, विवेक, शील, विचार सब मेरा साथ छोड़ 
गये थे तब ये बोध होना क़ि तुम मुझमे ही निहित हो मेरी किस्मत ही थी||

मुझे जो भी दुख है, क्या वो वास्तव मे दुख है या फिर दुख के आवरण मे किसी कड़वी सच्चाई को 
छुपाने का प्रयास है पर किसी भी झूट के आवरण मे छिपी हुई सच्चाई का अनुबोध होना ही वास्तव मे 
किस्मत थी||

किस्मत
क्या है, आख़िर क्या है किस्मत?

Friday, 26 August 2016

माना मै मर रहा हूँ

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

बेटो के बीच मे गिरे है रिश्‍तो के मायने
कैसे कहूँ कि इस झगड़े की वजह मै नही हूँ |

कुछ और दिन रुक कर बाट लेना ये ज़मीं
माना मै मर रहा हूँ, लेकिन मरा नही हूँ ||

Monday, 22 August 2016

अब रास नही आते

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

हर मोड़ पर मिलते है यहाँ चाँद से चेहरे
पहले की तरह क्यो दिल को नही भाते ||

बड़ी मुद्दतो बाद लौटे हो वतन तुम आज
पर अपनो के लिए कुछ आस नही लाते ||

काटो मे खेल कर जिनका जीवन गुज़रा
फूलो के बिस्तर उन्हे अब रास नही आते||

किसान, चातक, प्यासो आसमा देखना छोड़ो
बादल भी आजकल कुछ खास नही आते ||


Tuesday, 16 August 2016

क्या सचमुच शहर छोड़ दिया

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

अपने शहर से दूर हूँ,
पर कभी-२ जब घर वापस जाता हूँ
तो बहाना बनाकर तेरी गली से गुज़रता हूँ

मै रुक जाता हूँ
उसी पुराने जर्जर खंबे के पास
जहाँ कभी घंटो खड़े हो कर उपर देखा करता था

गली तो वैसी ही है
सड़क भी सकरी सी उबड़ खाबड़ है
दूर से लगता नही कि यहाँ कुछ भी बदला है

पर पहले जैसी खुशी नही
वो खिड़की जहाँ से चाँद निकलता था
अब वो सूनी -२ ही रहती है मेरे जाने के बाद से

मोहल्ले वालो ने कहा
कि उसने भी अब शहर छोड़ दिया
शायद इंतेजार करना उसे कभी पसंद ही ना था..

क्या सचमुच शहर छोड़ दिया?

Sunday, 7 August 2016

लाजबाब हो गयी

चाहने वालो के लिए एक ख्वाब हो गयी सब कहते है क़ि तू माहताब हो गयी जबाब तो तेरा पहले भी नही था पर सुना है क़ि अब और लाजबाब हो गयी|| कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

Thursday, 4 August 2016

प्यार नाम है

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

प्यार नाम है बरसात मे एक साथ भीग जाने का
प्यार नाम है धूप मे एक साथ सुखाने का ||

प्यार नाम है समुन्दर को साथ पार करने का
प्यार नाम है कश्मकस मे साथ डूबने का||

प्यार नाम है दोनो के विचारो के खो जाने का
प्यार नाम है दो रूहो के एक हो जाने का||

प्यार नाम नही बस एक दूसरे को  चाहने का
प्यार नाम है परस्पर प्रति रूप बन जाने का ||

प्यार नाम है एक साथ कुछ कमाने का
प्यार नाम है एक साथ सब कुछ लुटाने का||


Wednesday, 3 August 2016

अगर भगवान तुम हमको, कही लड़की बना देते

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

अगर भगवान तुम हमको, कही लड़की बना देते
जहाँ वालों को हम अपने, इशारो पर नचा देते||

पहनते पाव मे सेंडल, लगते आँख मे काजल
बनाते राहगीरो को, नज़र के तीर से घायल ||

मोहल्ले गली वाले, सभी नज़रे गरम करते
हमे कुछ देख कर जीते, हमे कुछ देख कर मरते||

हमे जल्दी जगह बस मे, सिनेमा मे टिकट मिलती
किसी की जान कसम से, हमारी कोख मे पलती ||

अगर नाराज़ हो जाते, कई तोहफे मॅंगा लेते
किसी के तोहफे नही भाते, तो तोहमत लगा देते||

अगर भगवान तुम हमको, कही लड़की बना देते||

Monday, 1 August 2016

फ़ौज़ी का खत प्रेमिका के नाम

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

कितनी शांत सफेद पड़ी
        चहु ओर बर्फ की है चादर
जैसे कि स्वभाव तुम्हारा
        करता है अपनो का आदर||

जिस हिम-शृंखला पर बैठा
        कितनी सुंदर ये जननी है|
बहुत दिन हाँ बीत गये
        बहुत सी बाते तुमसे करनी है||

कभी मुझे लूटने आता है
        क्यो वीरानो का आगाज़ करे
यहाँ दूर-२ तक सूनापन
        जैसे की तू नाराज़ लगे||

एक चिड़िया रहती है यहाँ
        पास पेड़ की शाखो पर
ची ची पर उसकी खो जाता हूँ
        जैसे सुध खोता था तेरी बातो पर||

मै सुलझाता हूँ उलझनो को
        जैसे सुलझाता था तेरे बालो को
कभी फिसल जाता हूँ लेकिन
        जैसे पानी छू गिरता गालो को||

कभी तुझे सोच कर हस लेता
        कभी तुझे सोचकर रो लेता
एक तेरा दुपट्टा  ले आया हूँ
        उसको आंशूओ से धो लेता ||

एक शपथ ली थी आते हुए
        सर्वोपरि राष्ट्रधर्म निभाऊँगा
मिलने का मन तो बहुत है
        पर अभी नही आ पाऊँगा||