Wednesday 19 October 2016

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है||

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

हर पहर, हर घड़ी रहता है जागता
बिना रुके बिना थके रहता है भागता
कुछ नही रखना है इसे अपने पास
सागर से, नदी से, तालाबो से माँगता
दिन रात सब कुछ लूटाकर, बादल
दाग काला दामन पर सहता यहाँ है||

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है...

हर दिन की रोशनी रात का अंधेरा
जिसकी वजह से है सुबह का सवेरा
अगर रूठ जाए चन्द  लम्हो के लिए
तम का विकराल हो जाएगा बसेरा
खुद जल के देता है चाँद को रोशनी
चाँद की तारीफ से पर जलता कहाँ है||

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है...

मुखहोटा है चेहरे पर, वो चेहरा नही है
सांसो पर उसकी भी पहरा वही है
हर एक सर्कस मे बनता है, जोकर
वो मुस्कराता है जैसे घाव गहरा नही है
हसता है वो दूसरो को हसाने की खातिर
गम उसका आँखो से बहता कहाँ है||

देने वाला देकर कुछ कहता कहाँ है...

No comments:

Post a Comment