Thursday 13 October 2016

कहीं कुछ भी नही है

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

सब कुछ है धोखा कुछ कहीं नही है
है हर कोई  खोया ये मुझको यकीं है
ना है आसमां ना ही कोई ज़मीं है
दिखता है झूठ है हक़ीकत नही है||

उपर है गगन पर क्यो उसकी छावं नही है?
है सबको यहाँ दर्द  मगर क्यो घाव नही है?
मै भी सो रहा हूँ, तू भी सो रहा है
ये दिवा स्वपन ही और कुछ भी नही है||

मैने बनाया ईश्वर, तूने भी खुदा बनाया
दोनो का नाम लेकर खुद को है मिटाया
क्या उतनी दूर है, उनको दिखता नही है
ये कहीं और होगे ज़मीन पर नही है||

एक बूँद आँखो से, दूसरी आसमां से
हसाते रुलाते दोनो आकर गिरी है
दोनो की मंज़िल, बस ये ज़मीं है
पानी है पानी और कुछ भी नही है || 

2 comments:

  1. एक बूँद आँखो से, दूसरी आसमां से
    हसाते रुलाते दोनो आकर गिरी है
    दोनो की मंज़िल, बस ये ज़मीं है
    पानी है पानी और कुछ भी नही है ||

    बहुत अच्छे...श्री शिवदत्त जी...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार, आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए ..

      Delete